यह गद्दारी गवारा नहीं …
ज़रा सी बात पर तूफान खड़ा कर देते हैं ,
यह वो है जो हाथों में आग लिए फिरते हैं ।
सब्र और सबूरी तो इन में ज़रा सी भी नहीं,
हर वक़्त ये झल्लाए औ बेसब्र ही रहते है ।
जाने कैसा दीवानापन है यह , कैसी वहशत ?
अपनी बेतुकी ज़िद को मनवाने में अड़े रहते हैं ।
अपनी जिम्मेदारिओं और फर्ज़ का पता नहीं ,
यह बस अपने हक़ की ही बात किया करते हैं ।
अपने इस घर (वतन) में इन्हें क्या नहीं मिलता !
फिर जाने क्यों यह गद्दारी पर मजबूर हो जाते हैं .
कहने को तो यह हैं वतन के मुस्तकबिल , वाह !
और जोश -ए -जुनून में इसे तोड़ने की बात करते हैं।
हर वक़्त लबों पर शिकायत और आँखों में अंगारे ,
ऐसे में क्या हम समझौते की उम्मीद कर सकते हैं?
हाँ जी ! ऐसे ही है यह इस सदी के युवा ‘ए अनु’ !
जिस थाली में खाया उसी में नामाकूल छेद करते हैं ।