***यह कैसी शिक्षा***
विषय – नई शिक्षा नीति
नीति चाहे नई हो या पुरानी उसका उद्देश्य केवल विद्यार्थियों का सर्वाँगिण विकास होना चाहिए । क्योंकि आज जिनके भविष्य को हम संवारने की बात कर रहें है वही कल देश के भविष्य के निर्माता की भूमिका निभाएँगे । कहा भी गया है कि भवन निर्माण करते समय अगर एक भी ईंट गलत लग जाती है तो भवन का गिरना संभंव है और अगर ईंट और नींव दोनों मज़बूत होंगी तो दुनिया की कोई भी शक्ति उसका बाल भी बांका नहीं कर सकती ।
शिक्षा किसी राष्ट्र अथवा समाज की प्रगति का मापदंड है । जो राष्ट्र शिक्षा को जितना अधिक प्रोत्साहन देता है वह उतना ही विकसित होता है । किसी भी राष्ट्र की शिक्षा नीति इस पर निर्भर करती है कि वह राष्ट्र अपने नागरिकों में किस प्रकार की मानसिक अथवा बौद्धिक जागृति लाना चाहता है । नई नीतियों के अनुसार वह अनेक सुधारों और योजनाओं को कार्यान्वित करने का प्रयास करता है जिससे भावी पीढ़ी को लक्ष्य के अनुसार मानसिक एवं बौद्धिक रूप से तैयार किया जा सके। नयी शिक्षा-नीति में परीक्षा की विधि एवं पूर्व परीक्षा विधि की तरह परीक्षा भवन में बैठ बैठकर रटे रटाए प्रश्नोत्तर लिखने तक सीमित नहीं रह गई है, अपितु विद्यार्थियों के व्यावहारिक अनुभव को भी परीक्षा का आधार बनाया गया है। इसमें प्रत्याशी अपने व्यावहारिक स्तर के मूल्यांकन के आधार पर कोई पद, व्यवसाय या उच्चतम अध्ययन को चुनने के लिए बाध्य होगा। नई शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य है कि शिक्षा इंसान को बंधनों से मुक्त करे और उसे सक्षम बनाए। इसमें इस बात पर भी ध्यान दिया जा रहा है कि शिक्षा रट्टा मार परंपरा से मुक्त हो जिसमें शिक्षा को स्कूल की चारदीवारी के बाहर की दुनिया से जोड़ने की बात कही गयी है। हम एक अद्भुत दुनिया में रह रहे हैं। यहाँ पर कुछ लोग वास्तविक गांवों को मिटाने और डिजिटल विलेज बसाने की बात करते हैं। भारत में चुनिंदा टेक्नोक्रेट चाहते हैं कि शिक्षा पर उनका कब्जा हो जाए और टीचर की जगह टेक्नॉलजी को रिप्लेस कर दिया जाए। मगर यह बात सौ फ़ीसदी सच है कि कोई तकनीक एक अच्छे टीचर की जगह कभी भी नहीं ले सकती।
भारत में इंटरनेशनल सेमीनार के नाम पर शब्दावाली का एक खेल हो रहा है, इस सेमीनार में हिस्सा लेने वाले लोग गाँव के स्कूलों की ज़मीनी वास्तविकताओं से अनभिज्ञ हैं। लेकिन स्कूल में इंटरनेट, वीडियो और स्मार्टफ़ोन पर इस्तेमाल होने वाले सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल करने की बहुत सी मनगढ़ंत वजहें गिनाते वक़्त उनका आत्मविश्वास देखने लायक होता है। हालांकि स्कूल में तकनीकिकरण को बढ़ावा देने वाले कुछ समर्थक स्वीकार करते हैं कि तकनीक शिक्षक के सहायक की भूमिका निभा सकती है। लेेकिन तकनीक पर इससे ज़्यादा भरोसा शिक्षा को उस मानवीय ऊष्मा से वंचित कर देगा, जिसकी झलक अभी स्कूलों में दिखाई देती है। बुनियादी तौर पर शिक्षकों से यह कहने की कोशिश हो रही है कि बच्चों को क्या पढ़ाया जाएगा के साथ-साथ कैसे पढ़ाया जाएगा? यह तय करने की जिम्मेदारी भी बाकी लोगों पर होगी। किसी स्कूल में क्या शिक्षक की भूमिका मात्र ऊपर से आने वाले निर्देशों का अनुसरण करने की होगी? अगर ऐसा होता है तो शिक्षक अब अपने ही बच्चों के बीच अज़नबी होने को मजबूर होगा। और बच्चों के बारे में कहा जाएगा कि उनको तो वीडियो गेम और इंटरनेट पर पढ़ना, प्रोजेक्ट बनाना पसंद है ऐसे में शिक्षक की जरूरत क्या है? लेकिन ज़मीनी वास्तविकताएं काफी अलग है। ऐसे में सवाल उठता है कि तकनीक का अत्यधिक लोभ हमें एक ऐसे अंधे रास्ते की तरफ न मोड़ दे…जहां से कोई वापसी नहीं होगी।
***नीतियाँ बनाने वालो
बच्चों के भविष्य से न खिलवाड़ करो ।
नैतिक मूल्यों और संस्कारों की जड़
तुम ऐसे न बर्बाद करो ।
खुशहाली तभी मिलेगी
जब भावी पीढ़ी का ख्याल रखोगे ।
शिक्षा और शिक्षार्थी को राजनीति से दूर रखोगे ।