यह कैसा प्यार
प्यार शब्द का कानों को स्मरण होते ही मन में एक अजीब सी उमंग एक अनोखा सा उत्साह पल्लवित हो जाता है। प्यार की पवित्रता,प्यार के विश्वास से ही सती सावित्री अपने पति के प्राण बचाने में सफलता की दहलीज तक पहुँच पाई। प्यार को वर्णित करते हुये विद्वानों ने कहा भी है कि क्रोध,लड़ाई,झगड़े से जो प्राप्त नही किया जा सकता वो प्रेम से प्राप्त किया जा सकता है। सच्चे प्रेम को परिभाषित करना सम्भवतः बहुत कठिन है। प्यार में सात जन्मों तक साथ जीने -साथ मरने की कसम भी खाई गई है। प्यार दिल से होता है दिमाग से नही और प्यार पागलपन की हदों से गुजार भी देता है।
आधुनिक ग्लैमर से ओत-प्रोत वतावरण में प्यार के बदलते मायने प्यार (प्रेम) के रोगियों की संख्या में खासा इजाफा देखने को मिला है। खासकर जब इन रोगियों की उम्र किशोरावस्था से युवावस्था की दहलीज पर खड़ी हो तो मामला और दिलचस्प हो जाता है नई उमंग, नया जोश, नया उत्साह आदि ने वेलेन्टाइन डे के भक्तों की संख्या के ग्राफ में काफी बढ़ोत्तरी की है। भले ही प्रेम रोग से पीड़ित मरीजों की संख्या ने एक नई कामयाबी लिखने का प्रयास किया हो लेकिन प्रेम के वास्तविक अर्थ को अनर्थ में बदलने की कोई भी कसर छोड़ने में रोगी पीछे नही हट रहे है। जिससे प्रेम जैसी अमूल्य निधि की पवित्रता पर प्रश्नचिन्ह लगाये जाने लगे है कि क्या यही होता प्यार? यह कैसा प्यार?
प्यार एक तड़प है, प्यार एक विश्वास है, प्यार अटूट बन्धन है , प्यार बसन्त है लेकिन आधुनिक समय में प्यार प्यार न रहा प्यार का नामोनिशान तो जोरों-शोरों से है लेकिन वह रूह से निकलकर जिस्म पर आकर सिमट गया। विरले प्रेमपुजारी ही ऐसे मिलेंगे जो जिस्म से नही रूह से प्रेम करते है और प्यार के वास्तविक स्वरूप को जीवंत बनाते है। अध्ययनरत होने के दौरान अपने अंग्रेजी पाठ्यक्रम में सम्मलित कविता “ट्रू ब्यूटी” वाकई मेरी उस समय के पाठ्यक्रम की सबसे पसंदीदा कविता रही जो स्पष्ट बयां कर रही थी कि गौरे गालों को, गुलाबी होंठों, सुनहरी जवानी को प्रेम न करो क्योंकि ये कुछ समय तक ही शेष रहती है वक्त की रफ्तार के साथ बुढ़ापा इन सब चीजों को छीन लेता है। सच्चा प्यार जिस्म से नही रूह से होता है जो गुलाबी होंठ, गोरे गाल , सुनहरी जवानी को नही देखता सच्चा प्यार,प्यार की पवित्रता को देखता है, सच्चा प्यार प्रेम करने वाले के विश्वास को देखता है, उसके अमूल्य गुणों को देखता है लेकिन 21 वीं सदी के इस युग में प्यार में पवित्रता,विश्वास,ईमान और गुण जैसे शब्द दूर -दूर तक नजर नही आते बल्कि ठीक इसके विपरीत प्यार अपवित्रता,अविश्वास,धोखा,हवस का पर्याय सा बन गया है जिसमें सिर्फ नशीली आँखे, मनमोहक जुल्फें, गौरे गाल, रसीलें होंठ इत्यादि के बलबूते पर ही प्यार की इबारत रचने का सिलसिला शुरू किया जाता है। वर्तमान के प्रेमरोगियों के प्रेम का यदि धरातल पर पूर्ण ईमानदारी और तथ्यपरक तरीके से परीक्षण किया जाये तो नतीजे चौकाने वाले आएंगे जो इस बात की ओर इशारा करता हुआ प्रदर्शित होगा कि वक्त की तेज रफ्तार के साथ मुकम्मल इश्क की परिभाषा ने एक नये मोड़ पर स्वयं को खड़ा कर दिया है जिसके मुताबिक प्यार एक टाइम पास हो गया, अविश्वास,धोखा का प्रतीक हो गया समाचार पत्र पत्रिकाओं में बड़े आराम से ही इस परिभाषा में सने समाचार बेहद ही सरलता से पढ़ने को मिल जाएंगे ।
हालातों का गहनता के साथ अध्ययन करते हुये यह कहना बिल्कुल भी अनुचित नही होगा कि ” डिजिटल इंडिया के सपने के साथ जीने वाली युवा पीढ़ी ने प्रेम का भी डिजिटलीकरण कर दिया जिसमें एंडोरायड मोबाइल भी अपनी महत्ती भूमिका निभाने लगा है और इस भूमिका को संजीवनी प्रदान करने का कार्य सोशल साइट बेहद ही खूबसूरती के साथ कर रही है।