यह कैसा दौर…?
यह कैसा दौर..?
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होली का दिन….सुबह से ही चारो तरफ चहल पहल हर ओर प्रेम प्रित का बातावरण जिसे देखो रंग व गुलाल लेकर एक दुसरे को लगाने व गले मिलने में मग्न….. इन सब से अलग भिखम सुबह से ही शराब पीने में व्यस्त था उसके लिए तो जैसे होली का मतलब ही शराब पीना था, इस कार्य में सहयोगिता उसके हमउम्र मित्र मण्डली की भी कम नहीं थी ………..कुछ तथाकथित मित्र बीच बीच में आते भीखम के साथ बैठते एक दो पैग लेते और चले जाते, कुछ इसे अपने साथ लेकर अपने घर जाते खुद भी पीते और इसे भी पिलाते। यानि पीने पिलाने का यह दौर बदस्तूर चलता रहा बीना यह सोचे की …………इस पीने पिलाने के दौर से कोई मांसिक व शारीरक रुप से आहत हो रहा है, किसी का त्यौहार इनके पीने पिलाने , खाने खिलाने के बीच ही उलझ कर रह गया है। किसी के मनोभावों का इन्हें तनिक भी एहसास नहीं।
राधिका पढी लिखी एक सुसंस्कारी पत्नी थी उसके लिए पति सेवा ही सर्वोपरि व्रत था…..शायद एकमेव लक्ष्य…….. सर्वश्रेष्ठ धर्म, वह जब से ब्याह कर आई थी बीना किसी शिकवा सिकायत अपना धर्म बखुबी निभाती जा रही थी लेकिन प्रतिफल जो उसके त्याग तपस्या के बदले उसे मिलना चाहिए था वह नहीं मिल पा रहा था…….राधिका एक सुसभ्य परिवार में उत्पन्न सांस्कृतिक मान्यताओं का पालन करने वाली एक धार्मिक लड़की थी……….गरीबी में पली बढी होने के कारण सहनशीलता भी उसके अंदर कुट कूटकर भरी हुई थी, इधर भीखम भी एक सधारण परिवार का सुलझा हुआ नौजवान था ………आज से पांच वर्ष पहले ही राधिका संग भीखम की शादी हुई थी ।
भीखम एक बड़े ही साफ सुथरे छवि का सुलझा हुआ लड़का था शादी बाद घरेलु अभाव से तंक आकर उसने महानगर का रूख किया ……….थोड़ी बहुत जद्दोजहद के बाद नौकरी भी लग गई ………काम अच्छा चलने लगा, जब तक सर पे परेशानियों का पहाड़ खड़ा था, मजबूरीयो से नाता जुड़ा था, पौकेट पे कंगाली छाई थी एक भी दोस्त- यार, संगी-साथी भीखम के पास नही फटका ………किन्तु जैसे ही पैसे आने प्रारंभ हुए दोस्त-यारों की, बचपन के विलुप्त हो चले संगी – साथियों की लाईन सी लग गई……..वैसे भी एक पुरानी कहावत है…..बने को साले बड़े आसानी से मिल जाते है परन्तु बीगड़े को खोजे से भी जीजा नही मिला करते।।
जब संगी – साथी बढते हैं तो कुछ अच्छी या कुछ बुरी आदते भी व्यवहार में गले पड़ जाना लाजिमी सी बात है, वो आ ही जाती हैं…………….कुछ ऐसा ही संयोग भीखम के साथ भी बना …………दोस्तों के आदतानुसार कुछ अच्छी आदतें और थोक के भाव कुछ बुरी आदतें भीखम के गले पड़ गई।
बुरी आदतों में एक दुर्लभ प्रकार की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पाई जाती है जो अच्छी आदतों में प्रायः नहीं मिलती। बुरी आदतें स्वतः आपको अपना गुलाम बना लेतीं हैं जबकि अच्छी आदतों को बड़े ही दुस्कर प्रयास…….. अत्यधिक कठिनाइयों के फलस्वरूप अपनाया जाता है……..वैसे भी आज का परिवेश अतिलघु प्रयासों पर निर्भर होने लगा है परिणामस्वरूप जो आसानी से प्राप्त हो जाय वहीं अपना लेता है ………..भीखम भी आज के संग…… कदम से कदम मिलाता हुआ …….जो आसानी से प्राप्त हुआ उसी का हो लिया……..। एक सीधा साधा गवईं नौजवान नाजाने कब महानगर के चकाचौंध मे खोकर कुसंगत का सीकर हो ; नशे का आदी हो गया ……..इस बात को वह खुद भी तो नहीं समझ पाया।
सुबह से दोपहर और दोपहर से साम फिर रात हो गई किन्तु भीखम का पीने पिलाने का दौर तब तक थमा नहीं जबतक की वो बेसुध होकर गीर न पड़ा।
आज शायद इतने वर्षों में पहली बार राधिका अपने भाग्य को कोस रही थी ………..शायद ईश्वर से मुखातिब हो पूछ रही हो ………….बता भगवन आखिर मेरे किस गुनाह की सजा मुझे मिल रही है।वैसे देखा जाय तो राधिका ने भी कुछ गलतियां तो की जब भीखम शुरू – शुरु में पीना प्रारंभ किया था तभी उसे इस दुराचरण का विरोध करना चाहिए था …… ..उसे इस कुआदत के दूस्परिणाम के समब्द्ध जानकारी देनी चाहिए थी……..परन्तु तब वह अपने तथाकथित पत्नी धर्म के पालनार्थ खामोश रही …………सबकुछ देखती और सहती रही……..किन्तु अब जबकि पानी सर से ऊपर जा चूका था ………….भीखम नशे का आदी हो गया ………..अब खुद के भाग्य को कोसने से क्या फायदा। आखिर पीछे पछताने का क्या फायदा जब खेत चिड़िया चूंग ही ले।
खैर राधिका की होली भीखम के शराबखोरी की बली चढ गई , किसी तरह कुछ निवाले उसने जीवन बचाने भर का ग्रहण किया और सोने चली गयी कारण एक तो त्यौहार की भागादौड़ी दूसरा पति का गलत आदत दिमागी तौर पर वह बहुत ज्यादा थक गई थी …….इतने थकान के बाद भी उसकी आंखें नींद से रिक्त थीं……. लाख प्रयास के बाद भी उस रात वह सो ना सकी ………….किसी प्रकार उस काली स्याह रात के बाद एक सबेरा तो हुआ किन्तु औरों के लिए ………..राधिका के लिए दुख के बादलों ने शायद हमेशा के लिए उसके सूर्य को अपने आगोस में छुपा लिया था……. राधिका के सूर्य को हमेशा – हमेशा के लिए ग्रहण लग गया था। इसे सब नियति के क्रूर खेल की संज्ञा दे रहे थे लेकिन …?
क्या यह वाकई नियती का क्रूर खेल था या फिर खुद के पैरो में मारी गई खुद की अपनी कुल्हाड़ी थी……….?
भीखम कल इतना पी गया की जो एक बार वह गीरा फिर उठ न सका…….. वह सदा के लिए सो गया एक गहरी चिरनिद्रा में।।
वैसे यह किसी एक भीखम या राधिका की कहानी नहीं नजाने कितने भिखमों और राधिकाओं की जिन्दगी इस शराब ने बर्बाद कर दी या फिर नर्क से भी बद्तर बना दी। आज के दौर में क्या गांव, क्या शहर या फिर महानगर शराब तो जैसे फैशन बन गया है, स्टेटस सिंबल बन गया है ……………ऐसा प्रतीत होता है जैसे जो रोज ना पीता हो वह समाज में निन्दा का पात्र और जो पीता हो वह ऊचें कद काठी का अति सम्मानित व्यक्तित्व। आज दुध, दही, घी जितने नहीं बिकते उससे कईगुना ज्यादा मांग शराब की है।…..। होली, दीवाली, दशहरा, नव वर्ष, शादी विवाह आदि मौको पर भी अब पुवे पकवान , खीर पुड़ी, मिष्टी मलाई की जगह बस शराब, शराब और शराब……….?
आखिर हम किस दिशा में अग्रसर है हम तो नहीं समझ पा रहे………अगर आप समझ पा रहे हों तो हमें भी समझाने का प्रयत्न करें।
धन्यवाद
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©® पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
३/३/२0१८ (दिल्ली)