यह कलियुग है यहां हम जो भी करते हैं
यह कलियुग है यहां हम जो भी करते हैं
उसका उल्टा ही हमें प्राप्त होता है
लोग कितने भी अच्छे हों जैसे वो होते हैं
दूसरों को अपने जैसा ही समझते हैं
जो अच्छे हैं उन्हें सब अच्छा ही लगता है
इस अच्छे बुरे के खेल में क्यों उलझना है
भीड़ का हिस्सा हमें तो नहीं बनना है
अकेले हैं अच्छे भले हैं फिर क्यों खुद को खोना है
_ सोनम पुनीत दुबे