यही रात अंतिम यही रात भारी।
यही रात अंतिम यही रात भारी।
आनंद अतिरेक अनुपम अबोला,
अदभुद ही आएगा प्राची से डोला,
कण कण सुवासित प्रभासित करेगा,
उपहार लाएगा किरणों का मेला,
वंचित न कर देना कल की सुबह से,
करुण प्रार्थना तुमसे कोदंड धारी।
यही रात अंतिम यही रात भारी।
नूतन जगत का कमल कल खिलेगा,
कलंकित कलह कीच का तम मिटेगा,
सदियों के दासत्व का अंत होगा,
सुधा सोम संगम सनातन सजेगा,
समर्पित था तुमको समर्पित रहूंगा,
समर्पित हूं तुमको अवध के बिहारी।
यही रात अंतिम यही रात भारी।
कराएंगे परिचित तुम्हारे कवित से,
सिखाएंगे जीना तुम्हारे चरित से,
संहार दुष्टों का कैसे हैं करते,
व्यवहार कैसा उचित है दमित से,
तुम्ही बीज ब्रह्मांड पादप तुम्ही हो,
त्रिदेव तुम राम तुम ही मुरारी।
यही रात अंतिम यही रात भारी।
Kumar Kalhans