यही इश्क़ तो नहीं
हमने कुछ कहा नहीं
तुमने कुछ सुना नहीं
फिर भी पता चल गया ज़माने को
कहीं यही इश्क़ तो नहीं
छुपाने से जो छुपता नहीं
जताने से जो होता नहीं
रातों की नींदें छीन लेता है जो
कहीं यही इश्क तो नहीं
अब ये मन कहीं लगता नहीं
देखकर उसको ये भरता नहीं
एक मुलाकात के बाद फिर मिलने का इंतज़ार
कहीं यही इश्क़ तो नहीं
आंसू आंखों से जाते नहीं
जब तक दीदार हो जाते नहीं
सबकुछ भूल जाता है उसका चेहरा देखकर
कहीं यही इश्क़ तो नहीं
बिना देखे मुझे, उसे भी चैन आता नहीं
यूं ही नंगे पैर वो दौड़ा चला आता नहीं
है कोई ताकत जो खींच रही है उसे मेरी तरफ
कहीं यही इश्क़ तो नहीं
यूं ही वो लोक लाज भूलता नहीं
तलवार की नोक पर यूं चलता नहीं
कुछ तो है जिसने बना दिया उसे इतना निडर
कहीं यही इश्क़ तो नहीं
रहा उसमें अब कोई गुरूर नहीं
मानता अब वो मेरी बात बुरी नहीं
बदल जाए जब इस तरह कोई अचानक
कहीं यही इश्क़ तो नहीं।