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14 Jan 2021 · 1 min read

यहाँ सड़के भी मिलती हो कातिलों के नाम पर

यहाँ सड़के भी मिलती हो अब तो, क़ातिलों के नाम पर
क्यों हैरानी सेना के मुंह से छीने हुए निवालो के काम पर

जहाँ बूढे माँ बाप को तो घर से बाहर निकाला जाता हो
और बच्चे जाते रूठे खुदा को मनानें फिर चारों धाम पर

जिंदगी की कड़वाहट का अहसास ऐसे भी हो जाता है
जहाँ मर्यादा खोकर टिक जाती हो नजरे जा श्रीराम पर

हाथ मिलते ही चुभ जाते हो जहां नश्तर दिल में सबके
जहाँ राम राम भी नहीँ मिलता हो अब दुआ सलाम पर

समझती है दुनियां अब अशोक ज़ख्मो को लिख डालेगा
जहाँ फतवा भी निकल जाता अशोक के सर कलाम पर

क्या हैरानी यारों सेना के मुंह से छीने निवालों के नाम पर
यहाँ तो ईमान भी बिकता हो हमेशा कोड़ियों के दाम पर

अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से

1 Comment · 174 Views
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