यहाँ सब बहर में हैं
यहां सब बहर में हैं
मैं बे-बहर ही सही
तोल तोल कर कब भला
यह जीवन चला करता है
टपके जब आंख से आँसू
क्या कोई मापा करता है
अपने जल में मधु घोल दे
सागर में ये सामर्थ्य कहाँ
दरिया में कोई विष घोल दे
ऐसे किसी के अर्घ्य कहाँ
पृष्ठांकित सभी चेहरों पर
रदीफ़, क़ाफिये दम तोड़े
मणियों पर जब चिंता हो
नागफ़नी के सिर कुचलें
परिमित परिधि में कब तक
कौन यहाँ पर कब जिया है
सिर से जब उतरा हो पानी
देवों ने अतिक्रमण किया है
मैं हूँ लघु इकाई श्वास की
उजला मन, अंधेरे साथी
अर्जुन सी कायरता मन में
ढूंढूं कहाँ मैं कृष्ण सारथी
दोहे तोले, मुक्तक तोले
तोल न कभी ख़ुद पाये
गज़लों के मुख गीत सुनें
और ना धर्म जान पाये
सूर्यकांत