यहाँ “मासूम” रुकना था मगर जाने की जल्दी थी
हमें उनकी पनाहों में ठहर जाने की जल्दी थी
उन्हें भी हमको तन्हा छोड कर जाने की जल्दी थी
हम उनकी बात पर थोड़ा यकीं करने लगे थे अब
पर अपनी बात से उनको मुकर जाने की जल्दी थी
सुकूं चैनों की खातिर हम तो गाँवों को चले थे पर
यहाँ गाँवों को शहरों में उतर जाने की जल्दी थी
घङी खुशियों की जी भर के अभी जी भी न पाए हम
क्यों अच्छे वक्त को जल्दी गुजर जाने की जल्दी थी
बङी हसरत से इस दिल में बसाया था उन्हें हमने
मगर उनको तो इस दिल से उतर जाने की जल्दी थी
या कहिए दिल हमारा ही जरा फूलों से नाजुक था
जो इसको ठेस लगते ही बिखर जाने की जल्दी थी
बहुत मुद्दत में हमको रास आई थी कोई महफिल
यहाँ ‘मासूम ‘ रुकना था मगर जाने की जल्दी थी
@मोनिका”मासूम”
15/5/16
मुरादाबाद