यमुना, एक मरन्नासन नदी
यमुना , एक मरनासन्न नदी
कहां हो तुम कृष्ण?
गाए चराते थे
बांसुरी बजाते थे
यमुना के किनारे
रास रचाते थे
बज उठते थे
सृष्टि के कण कण में
संगीत के खंजीरे
वही तुम्हारी यमुना
हां,वहीं यमुना
बन गई है गंदा नाला
तोडं रही है दम
सह रही है
आधुनिक सभ्यता का दमन
कालिया नाग प्रदूषण का
फैला रहा आतंक ।
आओ कृष्ण थाम लो
यमुना का दामन
नहीं तो
सरस्वती की तरह
हो जाये गी लुप्त
नहीं मिले गी यमुना
न धरती पर
या धरती के भीतर
कहीं गुप्त।
नथना होगा कालिया नाग
बुझानी होगी भर्ष्टाचार की आग
सफाई के नाम पर
चट कर जाते सारे प्रयास
अब जब तुम
पुन:आओगे
युमना को कहीं नहीं पाओगे
कहां बांसुरी बजाओ गे
बिना बांसुरी के कृष्ण
कैसे कहलाओगे ?
।