यमराज की चतुराई
एकांत में बैठे यमराज, ना जाने कौन से चिन्ता में खोए थे।
चित्रगुप्त ने भंग कर उनका एकांत ,
प्रशन किया शीश नवाकर,
क्या बात है महाराज?? ऐसे मूंह क्यो लटकाए हो??
सोभा ना देती धर्मराज को ऐसी चिंताओं कि रेखा,
वैसे, सब का अंत करने वाल को किसने उलझन में डाल दिया??
क्या कोई नेता आ गया यमलोक में,?
खाता देख के बताओं चित्रगुप्त,
और कितने को लाना है मृत्यु लोक से,
लगभग पांच लाख आत्मा आ चुके यहां इन चंद दिनों में,
क्या पूरी मानव जाति को ही लाना है??
तक गया हूं मैं इन्हें रोजगार, घर देते देते,
पता नहीं कैसी विपदा खड़ी कर दी,
इन मृत्यु लोक वालो ने,
बेरोजगारी कि समस्या अलग खानें कि अकाल पड़ गई यहां,
इन्हीं चिंताओं में पड़ा कोई उपाय ढूंढ रहा हूं,
सोच रहा आज बम भोले से मिल आऊं,
धरती के हालात पे कुछ विचार विमर्श कर लूं उनसे,
मेरे अनुपस्थिति में तुम रखना इस यमलोक का ख़्याल,
जब धरती पे जा हि रहा हूं तो तीर्थ यात्रा भी कर ही लुंगा,
परेशान कर रखा इन मानवों ने सब को,
शायद ना मिले कोई उपाय भोले के पास तो,
गोलोक, साकेत, वैकुंठ, ब्रह्म लोक इत्यादि भी जाना पर जाएं,
तुम धिरज धर के ख्याल रखना इस यमपुरी का ,
कोई आत्मा परेशान करे तो दण्ड देना उसे,
सभी अधिकार सौंप तुम्हें कुछ दिन छुट्टी पे जा रहा,
यह, क्या अपनी मुसीबत मेरे माथे क्यो सौंप रहे हो,
यह आज्ञा है हमारी,
बेचारा चित्रगुप्त धर्मसंकट में पड़ा,
एक समस्या क्या कम थी आत्माओं कि हिसाब-किताब की,
जो यमराज भी छुट्टी पे चल दिए,
वह भी ऐसे मोके पर,
पर वह कुछ कर नहीं सकता,
वरना बेरोजगारी कि तलवार उसके सिर भी लटक जाएगी,
पर , धर्मराज के चतुराई पे उसे आ रहा क्रोध बहुत।