यथार्थ
नर तुम नत होकर देखो
छोड़ मिथ्या अहं का आंचल
यथार्थ धरा के पथ को देखो |
मन की ये कुम्भल तृष्णा
हरसंभव प्राप्ति वासना,
अर्धमन देने की एक बार
प्रयास सतत तुम करके देखो |
अमूल्य मानव वृक्ष को बोकर
दुर्वचन फल पा भी जाओ,
तिक्त रस पीकर भी
सुफल की आस करके देखो |
परमात्मा की आत्मा परम
यह अभिव्यक्ति है अहम,
त्याग आडम्बर का यह वहम
नर रूप में आकर तो देखो |
नर तुम नत होकर देखो
छोड़ मिथ्या अहम का आंचल
यथार्थ धरा के पथ को देखो ||