यथार्थ में मृत्यु को
तुम्हारे ही दिल का टुकड़ा हूं
तुम्हारे लिए मैं एक चांद की चांदनी
फूल सा सुंदर ही कोई मुखड़ा हूं
तुम्हारे प्रीत की एक रागिनी हूं मैं
तुम्हारे ही तन की मिट्टी से बनी
कोई जीती जागती एक कहानी हूं मैं
तुम्हारे दीपक की लौ की आंच से अब
क्यों हूं मैं वंचित
तुम्हारे से ही जन्मी हूं
तुम्हारी मृत्यु से पर मैं हूं क्यों
विचलित
तुम्हारे दीदार को मेरी यह
आंखें क्यों तरस गई
तुम्हारे अहसानों का ऋण मैं इस
जन्म में कैसे उतारूं कि
बार बार जन्म लूं और
तुम जो न मिलो तो
मैं अपनी धुरी से भटक गई
तुम्हें पाना चाहती हूं मैं
तुम्हें जानना चाहती हूं मैं
तुम्हारे पास आना चाहती हूं मैं
मुझे अपनी शरण में ले लो कि
खुद को तुम्हारे आगोश में अब
सिमटवाना चाहती हूं मैं
तुम्हारी ही तरह एक गहरी नींद सो
जाना चाहती हूं मैं
सपनों में रहना चाहती हूं जागृत
और यथार्थ में मृत्यु को
पाना चाहती हूं मैं।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001