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27 Jul 2020 · 1 min read

यथार्थरूप भाग-३

चरित्र का व्याख्यान
ना तो व्यग्र, ना ही सूझ-बूझ
और ना ही ह्रदय की कोमलता कर सकती हैं
जबकि व्यवहारिक तौर पर
अस्तित्व का ज्ञान
किसी के स्वभाव को अधूरा ही समझा पाता है।
फलतः एक ऐसी स्थिति
जब मन अन्धक की भांति
शान्ति के विभिन्न संबलों को गिराता चलता है
तो जिव्हा ही, भावनाओं की आड़ में
वास्तविकता को छुपाने लगती है
जिससे एक विश्वास अहम् के सदृश होकर
औचित्य को भूल सत्य से परे हो जाता है
जहाँ स्वयं को सार्थक कहने का दर्प
अपमान के भय में,
निरंतर बढ़ता ही रहता है।

‌‌- शिवम राव मणि

Language: Hindi
2 Likes · 3 Comments · 513 Views
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