यथार्त की बलि
यथार्त के नाम पर
चला है जब भी क़लम
और पड़ी है नीव
किसी उपन्यास की
जाने अन्जाने ही
हुई है बदनाम
समाज में
कोई न कोई “लोलिता”
*****
सरफ़राज़ अहमद “आसी”
यथार्त के नाम पर
चला है जब भी क़लम
और पड़ी है नीव
किसी उपन्यास की
जाने अन्जाने ही
हुई है बदनाम
समाज में
कोई न कोई “लोलिता”
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”