यत्र नार्यस्तु पुज्यन्ते रमते तत्र देवता
“यत्र नार्यस्तु पूज्यंते
रमंते तत्र देवता”
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हे रमणि बनिता नारायणी,
हे कर्मठ नारी।
सौंदर्य,कला ,विद्धता में है,
तू सब पर भारी।
अवर्णनीय तू ईश की ,
अनोखी कलाकारी।
रची है विधाता ने सुरंग
पूर्ण चित्रकारी।
संस्कृति में जो शुभ, सुंदर,
और हितकारी।
कल्पना उसकी केवल और
केवल है नारी।
परिवार की धुरी सुख-समृद्धि
की मिसाल तू है।
स्नेहमयी बहन,बेटी,पत्नी,
ममतामयी मां तू है।
गुण तुझमें असंख्या त्याग,
धैर्य की सीमा तू है।
गृहणी, विदुषी,गणितज्ञ,और
शक्ति रूपिणी तू है।
सहचरी, सखी, प्रेरणादाई,
परामर्श दात्री तू है।
सुदृढ़, शुभचिंतक, अथक
गतिमान तू है।
सदियों सदियों से नारी गाथा,
अविस्मरणीय आ रही है।
नारी बिन पुरुष का अस्तित्व,
गरिमामय नहीं है।
रामायण के पन्नों में सबने
यह पंक्ति पढ़ी है।
अश्वमेघ यज्ञ में सीता बिन,
राम ने भी आत्मग्लानि सही है
आत्मसम्मान की अधिकारी
आज की सक्षम नारी है।
नारी की उपेक्षा अपमान,
भयंकर प्रलयकारी है।
उन्नतिमार्ग,अग्रसर शीर्ष स्पर्श
करती ये नारी है।
परिवार समाज राष्ट्र विकास,
सदैव हितकारी है।
शीला सिंह
बिलासपुर हिमाचल प्रदेश?