“यकीन”
यकीन तो बहुत है तुम पर ,
सतरंगी सपनों का मखमली अहसास
सुर्ख रंगों की शोखियाँ ;
मैनें बड़े जतन से तुम्हारे अंक में पूर दिए हैं
तुम्हारा अंक मेरे लिए तिजोरी जैसा …,
जब मन किया खोल लिया और
जो जी चाहा खर्च किया
खर्चने और सहेजने का ख्याल ,
ना मैंने रखा और ना तुमने
जिन्दगी बहुत छोटी और नश्वर है
अनमोल और दुर्लभ समझना चाहिए
इसे कतरा-कतरा जीना और
घूंट-घूंट पीना चाहिए ।
××××××