मज़ारें
इक बार और सही
ज़ख़्म को छेड़ो अपने ,
दाद देने के
अंदाज़ निराले है I
ग़म के साए अपने
तन्हा रातें अपनी ,
महफ़िल फिर यादों की
तेरे हवाले है I
किस्मत ही ऐसी मेरी
नाक़ामियाँ ही पायी ,
दुनिया में तो किसी ने
शमा भी न जलाई ,
मेरे बिखरे ख़्वाबों की
उजडी सी मज़ारें है I