मज़हब ए चुनाव
मज़हब नही सिखाता आपस में बैर करना ….ये सुना सुनाया सा जुमला है आधुनिक युग में हर नेता के लिए कारगर फॉर्मूला सा है
कर रहे थे नेताजी अपन धंधा…माँग रहे थे वोटों का चंदा
हिंदू मुस्लिम हो या सिख ईसाई…आप सभी हो मेरे भाई
भीड़ में से आवाज़ आई…नेताजी आपने अपनी जाति नही बताई
नेताजी बोले जो बनेगा मेरा वोट बेंक मैं तो उसीका भाई ।
फ़िर पूछा किसीने काम क्या करोगे..? तब नेताजी ने रणनीति बताई
देकर हम भाषण..दिलवाएंगे कुछ जातियों कॊ आरक्षण
जब लोगों में होगा मनमुटाव तब देंगे हम वोटों का दबाव
और तब भी आप वोट नही देंगे तो फ़िर होंगे सामप्रदयिक दंगे ।
बोला एक व्यक्ति साम्प्रदायिकता की आग में क्या देश हो जाए बरबाद….नेताजी बोले बंधु वोट मुझे दीजिए देश कॊ ना बरबाद कीजिए..यदि नही दिया जो मुझे वोट..तो देश आपका जल जाएगा
साम्प्रदायिकता की आग में आमजन खाक में मिल जाएगा ।
तो समझो बंधु मेरी ज़रूरत क्योंकि मैं हूँ सौहार्द्रता की मूरत ।
जब अटकाते हैं नेताओं के भाषण रोड़े
ऐसे में कोई कैसे साम्प्रदायिक सौहार्द जोड़े…
नेताजी के भाषण से बात एक बात समझ में आई
हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई क्यों ना हो पाते है भाई-भाई…
क्यों ना हो पाते है भाई-भाई….।