मज़दूर
एक दो क्या सौ ग़मों से चूर हूं
ज़िन्दगी के हर मज़े से दूर हूं।
रोज़ी-रोटी के लिए बाज़ार में
रोज़ बिकने के लिए मजबूर हूं।
नाम कमला हो,कमल हो या कमाल!
काम मेरा धर्म है,मज़दूर हूं।
नियाज़ कपिलवस्तुवी
एक दो क्या सौ ग़मों से चूर हूं
ज़िन्दगी के हर मज़े से दूर हूं।
रोज़ी-रोटी के लिए बाज़ार में
रोज़ बिकने के लिए मजबूर हूं।
नाम कमला हो,कमल हो या कमाल!
काम मेरा धर्म है,मज़दूर हूं।
नियाज़ कपिलवस्तुवी