म्हारे हरयाणे की नार
म्हारे हरयाणे की नार
हे रै घाघरा लूघड़ी जडै पहनावा, दाल चूरमा खाणा
काम करण में नार ना पाच्छै, इसा म्हारा हरयाणा।।
खेत क्यार मैं सबतै पहले, खड़ी लुगाई पावै
बीर मर्द की जोड़ी देखो, सबनै खूब रिझावै
दोघड लेकै बीर या चाल्लै, सुंदर इसका बाणा
काम करण में नार ना पाच्छै, इसा म्हारा हरयाणा।।
घणी कमेरी नार अडै की, घर में डांगर राक्खै
दूध बिलोवै लेकै विलोणा, धी भी अलूणी चाक्खै
घूंघट काडढै बड़े-बुढ्या तै, देख नार शर्माणा
काम करण में नार ना पाच्छै, इसा म्हारा हरयाणा।।
लट्ठ लेकै या खेल्लै होली, करती मर्द सुताई
घनी सुनै ना नार अडै की, बात या सब न बताई
लेकै दराती सरसों काटै, आवै खूब कमाणा
काम करण में नार ना पाच्छै, इसा म्हारा हरयाणा।।
छोरी अपनी कम कोन्या सै, दूनिया भर में छाई
खेल-कूद मै अपनी लाडो, मैडल घनै या लाई
सूट पहर कै खेल्लै कुश्ती, देखे सारा जमाणा
काम करण में नार ना पाच्छै, इसा म्हारा हरयाणा।।
© अरविंद भारद्वाज