मौसम
बहार का स्वागत
तो सब करते हैं
पतझड़ का स्वागत
कौन करेगा
सिवाय मेरे?
पतझड़ में तो
सेब के
ठूँठ वृक्षों पर
एक भी पत्ता नहीं रहता
पौष-माघ के
भयानक शीत में
ठिठुरता है पूरा वजूद
आँखों को
पीना पड़ता है
वो ढेर सारा ध्ुआँ
जो उगलती हैं
बदन को गर्माने वाली लकड़ियाँ
चारों तरफ़
रहता है गाँव में
पसरा हुआ सन्नाटा
चलती हैं बर्फ़ीली हवाएँ
फटते-सूखते हैं
शीत से होंठ
लेकिन मैं
स्वागत करती हूँ
इस बर्फ़ीले मौसम का
क्योंकि
खेतों में
अंकुराने लगते हैं
गेहूँ और जौ
आकाश से चुपचाप
बरसती है रुई के
फाहों जैसी
सफे़द बर्फ़
चमकने लगते हैं पर्वत शिखर
सेब के वृक्षों की
सूखी टहनियों पर
उतर आते हैं
लम्बी पूँछ वाले
प्रवासी पंछी नीलकण्ठ
बाग़ की मुंडेरों पर
महकने लगती है
गुच्छों में
पीली आँखों वाली नर्गिस
और मैं
स्वागत करती हूँ
पतझड़ का
हाथों में
थोड़ी सी बर्फ़ लिए
कहती हूँ
पहली बर्फ़ मुबारक़