मौसम
फ़रवरी की हल्की गुलाबी ठंड थी
सुबह ख़ुद को कोहरे में लपेटे हुए
हल्की हवाओं से ओस को संभाले थी
पेड़ों से गिरती ओस बारिश सी झल रही थी
सूरज आग की धीमी लौ-सा जल रहा था
धीरे धीरे सफ़ेद चादर में पिघल रहा था
कुछ ऐसे सर्द हवाओं के मौसम में
हम भी कुछ अंदर से जल रहे थे
सूरज जैसे धीरे धीरे हम पिघल रहे थे
कुछ गरमाहट-सी थी साँसों में मेरी
इश्क़ का ख़ुमार था दिल पर कुछ ऐसा
हर बात कहि तेरी नशे में लग रही थी
साँसों की गरमाहट उनके पास आने से थी
पिघलती सी शामें अब तेरी बाँहों में थी
कुछ तो नशा है इस मौसम में सनम
हर रात सुबह की दीवानी सी लग रही थी