“मौसम”
यूँ तो पल पल में बदलते रहते है मौसम!
नित नव क्रियाओं में, बहते हैं ये मौसम!!
रश्मि सुनहरी करती सहर का आगाज!
प्रति क्षण गुनीत तपिश, पहर का साज!!
निशा के आगोश में, शशि दुबक रहा है!
तन्हाई के आलम में, कोई सुबक रहा है!!
सर्दी गर्मी बरखा बसंत, की बात निराली!
अपने अपने काल में, बाँटते है खुशहाली!!
बरखा रानी ओढ़े चुनर, अवनि को धानी करे!
हरियाली की चादर से,अंबर घन पानी धरे!!
रेखा कापसे होशंगाबाद मप्र
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित
शीत काल में हिमपात, कहर सा बरपाते है!
गुनगुनी धूप में धड़कन, नजर भर समाते है!!
बसंत की बात निराली, चहुँओर फूलों की डाली!
सुरभित कण-कण लगे, मनमोहक मन माली!!
गर्मी में अगन उगले रवि, साय साय पवन चले!
तनिक शीतल पुरवाई, खातिर फिर हवन जले!!
रेखा कापसे होशंगाबाद मप्र
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित