मौसम ममन को रास नही
मौसम में को रास नहीं
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सावन आया मास नहीं,
मौसम मन को रास नहीं।
बदला-बदला रंग दिखा,
कोई अब है दास नहीं।
लापता तो हैं लोग मिले,
खाली घर मे वास नहीं।
बदले-बदले चाल-चलन,
मिलता कोई ख़ास नहीं।
लगते रहतेब रोग यहाँ,
रुकता अब है नाश नहीं।
मनसीरत चित दूर बहुत,
दिल का दर्दी पास नहीं।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)