मौसम बदल रहा है
धीरे- धीरे कर इस जहाँ का
मौसम बदलने लगा है
वातावरण में शुद्धता की जगह
प्रदुषण ने ले लिया है।
पिछले कुछ दशको की
बात हम करे तो
मौसम में एक अजीब सी
परिवर्तन देखने को मिला।
कही सुखे की मार,कही बाढ
का प्रकोप पुरे संसार में
देखने को मिला है।
कही जरूरत से ज्यादा गर्मी,
कही तो जरूरत से ज्यादा ठंडी
तो कही बाढ़ का रूप लेकर पानी,
कही अपना विकराल रूप धर
हम सब को सता रही है।
कही मौसम आग उगल रही है
कही आसमान ओले बरसा रहा है
इंसान को जैसे हर तरफ से
यह मौसम तड़पा रहा है।
कहीं ग्लेसियर पानी में बदल रहा
कहीं पहाड़ों का भूस्खलन हो रहा है
इंसान के जीवन मे मौसम ने
तो
जैसे कोहराम मचा रहा है।
दुनियाँ चिंतित है मौसम के
इस बदलते हुए मिज़ाज से
क्या करे, कैसे इसे रोका जाए
दुनियाँ के वैज्ञानिक इस पर
काम करने में लगे हुए है।
पर कही न कही इस बर्बादी
का जिम्मेदार हम सब खुद है
अपनी सुख-सुविधा के लिए
हमने अंधाधुंध पेड़ को धरती
से काटा है
हवा में भी तो प्रदुषण हम
सब ने ही तो घोला है।
आओं मिलकर हम सब विचार करे
जो गलत किया है प्रकृति के साथ
उसे मिलकर सुधार करे
न ज्यादा तो कम से कम
हर वर्ष एक पेड़ अवश्य लगाएँ ।
गाड़ियों की कम इस्तमाल कर
हवा में प्रदुषण न फैलाएं
इस ग्लोबल वार्मिंग को दूर
करने के लिए
एक-एक जन अपना योगदान दे।
प्रकृति रहेगी तो ही हम सब रहेंगे
यह बात दिलों दिमाग से जान ले।
प्रकृति को बचाने की जिम्मेदारी
सिर्फ सरकार की नही है
हम सब जन-जन की है
यह बात मान ले।
~ अनामिका