“मौसम चुनाव के”
चंदा मामा दूर के, पुए पकाये गुड़ के,
नेताजी मेरे घर पर आये, भोजन किये हूर के।
चंदा मामा दूर के।
सगे संबंधी सब ललचाये, आस पड़ोस सब भरमाये,
कह के गए हैं आएंगे नेताजी घूर के,
चंदा मामा दूर के।
चढ़ा चुनाव का पारा है, माहौल बड़ा सरारा है,
बड़का छोटका सब आये हैं और आये हैं दूर के,
चंदा मामा दूर के।
रंग बिरंगे नेताजी चोला ओढ़े हैं सफ़ेद,
खोल रहे है एक दूसरे के भेद के पीछे का भेद,
जो जीता वो सिकंदर बाँकी सब सपना चकनाचूर के,
चंदा मामा दूर के।
बहुत हुआ है उछला उछली,
बहुत हुआ है कुदा फांदी,
सब पड़े हैं पीछे सत्ता के कोहिनूर के,
चंदा मामा दूर के।
लटके नेता, फटके नेता,
कुछ चढ़े हैं झाड़ पर कुछ बेमौसम चटके नेता।
जनता से ना किसी का पाला,
सब निकले है बेटिकट ही टूर के,
चंदा मामा दूर के,
पुए पकाये गुड़ के,
चंदा मामा दूर के!!!
✍️हेमंत पराशर✍️