मौसम किसका गुलाम रहा है कभी
ना रखिए उम्मीद ज्यादा किसी से
जो मिल जाय रख लिजिए खुशी से
कब तक नाराज़ रहिएगा ज़माने से
गल्तिया तो होती रहती है आदमी से
मौसम किसका गुलाम रहा है कभी
कभी खुशी छिन लेता है जिंदगी से
दुःख में ही तो तुझे याद करते हैं हम
तू तो नाराज़ ही होगा मेरी बंदगी से
काले बादल डरावने लगने लगते हैं
तु अंधेरा खत्म कर देता है रोशनी से
जब भर जाता मन मेरा अवसाद में
आशा की दीप जला देता है कहीं से।
नूर फातिमा खातून “नूरी”
जिला -कुशीनगर