मौसम और जलवायु
भाई यह मौसम है या गिरगिट है , जो नित प्रति रंग बदलता है ।
कभी सुबह धूप , तो कभी दोपहर बदरी , शाम होते बरसता है ।।
बेमौसम बरसात की मार ने , इस धरती का नूर छीन लिया है ।
कई बीमारी , नई बीमारी लाकर , इंसा का सुख छीन लिया है ।।
कभी भूकंप ,कभी ज्वालामुखी ,कभी दावानल ,कभी सुनामी में ।
लगता है इस धरा से कहीं , प्राणी मात्र खो ना जाए गुमनामी में ।।
पायी जाती इसकी एक बड़ी बहन , जो कहलाती जलवायु है ।
उसने भी थलचर , जलचर , नभचर की कर दी अल्पायु है ।।
क्योंकि इस धरती का तापमान , दिन पर दिन बढ़ता जाता है ।
कहीं अतिवृष्टि, कहीं अनावृष्टि कहीं शीत कोप बढ़ता जाता है।।
अब प्राणी इससे उबरे कैसे , जो प्रकृति से होड़ लगाता है ।
जंगल काटे , नदियाँ बाटे , धरती को उजाड़ बनाता है ।।
यह प्रकृति कब तक जुल्म सहे, जो इंसान उस पर ढाता है ।
ऊपर वाला भी तरह-तरह से , प्रकृति का संतुलन बनाता है ।।
अरे इंसान तू अब सुधर भी जा , और इस धरती का मान बढ़ा ।
तू ही सब प्राणियों में विवेकवान, “ओम” श्रेष्ठता से शान बढ़ा ।।
ओमप्रकाश भारती “ओम”