मौसम अच्छा है!
ये बेमौसम बरसात! अहा!
मजा आ गया- – –
मौसम अच्छा है !
सुबह-सुबह क्या बात हो गई!
एक अच्छे दोस्त से मुलाकात हो गई- – –
चिड़ियों ने नहाकर अपने स्वर बदल दिये
फूल और पत्ते खिलखिलाकर हँस दिये
सच है जोगी जीः
प्रकृति मौसम देखकर मौसम नहीं बदलती
बदलती है पर शुभ के लिए, सौंदर्य बिखेरने लिए !बदलता नहीं है तो सिर्फ ये आदमी !
हाँ, अक्सर बदलता है, निजी स्वार्थ के लिए
अच्छे मौसम में घर से निकलते रहिए और अच्छे लोगों से मिलते रहिए।
रस बरसाते हैं, सुगंध बाँटते हैं! दोनों।
रस बरसाते रहिए, सुगंध बाँटते रहिए!
कृष्णधर द्विवेदी (मुकेश कुमार बड़गैयाँ)
मेरे प्रिय साथी श्री नरेश जैन जी(जोगीजी) से सार्थक संवाद उपरांत लिखी गयीं पंक्तियां।