” मौसमी दोहे ” !!
हाथ जोड़ नेता खड़े , करे वोट की मांग !
सूरज गुस्से में तपे , घुली कुएं में भांग !!
तीखी तीखी धूप है , तल्खी दिखती साफ !
जनता सी नाराज़ है , लेगी गरदन नाप !!
सर्र सर्र करती हवा , हुई बड़ी सिरजोर !
कई टोपियाँ उड़ गई , नई सजी कुछ और !!
मौसम करवट ले चुका , बदल रहा परिवेश !
मतदाता तैयार है , सँभल रहा है देश !!
रातरानी महकेगी , है अभिसारी सोच !
परिणामों की अब चिंता , जैसे चिपकी जोंक !!
वोटों की है खेंच तो , वादों की है भेंट !
ठगी जायेगी जनता , फिर से सौ परसेंट !!
आँधी के आसार ना , तूफाँ के संकेत !
पाला बांधे है खड़ा , जन गण मन समवेत !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )