मौलिक सृजन
उसे विश्वास था मैं हाँ ही कहूंगा.
इस उत्तर में,
कि क्या ये मेरा मौलिक सृजन है?
लेकिन,
मैं निःशब्द था।
क्योंकि केवल शब्द
और उनसे बनी अभिव्यक्ति ही मेरी मौलिक हो….?
शायद…।
लेकिन वे भी तो नहीं!!
वे सब भी तो उसी ने बनाई – उसी से बनीं।
ब्रहमांड में अनंत सृजन हो रहे,
कोई एक भी सृजन मेरा मौलिक कहाँ है?
कोई और है सृजनकर्ता।
सच ही है,
कि जो सच है
वो मेरा मौलिक नहीं,
और जो मेरा मौलिक है,
वह सिर्फ मेरी कल्पना है।
सच है – सच में,
हूँ मैं सामर्थ्यहीन,
सच के मौलिक सृजन में।
…
लेकिन फिर भी,
एक सच्ची किताब पे लिखी हुई,
मैं अपने-आप में सच्ची मौलिक कृति हूँ,
एक ही सच के आपस में मिलने का संगम।
बिलकुल तुम्हारी तरह –
सच में!