मौलाना का जिन्न
बात कोई बहुत ज्यादा पुरानी नहीं है। एक मौलाना साहब कुछ लोगों को घेरे बैठे हुए थे। अपने करिश्मात और किए गए बड़े-बड़े कारनामों का बखान अपनी ही जुबान से कर रहे थे।
बहुत देर तक यह नजारा देखने के बाद आखिर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने पूछ ही लिया, “मौलाना साहब! आपके पास जरूर कोई ताकत होगी जिसके जरिए आप इतने बड़े-बड़े कारनामों को अंजाम दे पाते हैं।” इतना सुनते ही मौलाना की बांछें खिल गई और उन्होंने अपने गुणगान मैं इजाफा कर दिया। मौलाना के बीच हुई बातचीत को मैं यहां पेश कर रहा हूं-
सवाल: आपके पास ऐसी कौन सी ताकत है जिसके जरिए आप लोगों की समस्याओं का समाधान करने में कामयाब रहते हैं?
जवाब: मेरे कब्जे में जिन्नात हैं। इसके लिए मैंने 40 दिन का चिल्ला किया था। इस दौरान पूरे 40 दिन तक एक घर में तन्हा रह कर इबादत में लगा रहता था। वहीं पर जौ की रोटी से गुजारा किया। चिल्ले के दौरान किसी से बोलचाल तक का परहेज करना पड़ता है।
सवाल: चूंकि चिल्ला करने के दौरान आपको एक मकान में तन्हा रहना पड़ा था। इसलिए लगभग 6 जुमों की नमाज भी आपने कजा की होगी। क्योंकि जुमे की नमाज मस्जिद मैं जमात और खुतबे के साथ पढ़ी जाती है।
जवाब: नहीं, ऐसा नहीं है। मैं जुमा की नमाज पढ़ने मस्जिद ही जाता था। हां, इस दौरान किसी से भी बातचीत नहीं करता था।
सवाल: जब बातचीत नहीं करते थे तो आप किसी के सलाम का जवाब भी नहीं देते होंगे… और सलाम का जवाब नहीं देना बहुत बड़ा गुनाह माना गया है।
जवाब: मैं सलाम का जवाब जरूर देता था लेकिन इशारे से।
सवाल: खैरियत पूछने पर आप किसी की बात का जवाब भी नहीं देते होंगे।
जवाब: मैं इशारे से जवाब दिया करता था।
सवाल: फिर तो 40 दिन तक आप किसी की मय्यत, नमाजे जनाजा या दफन में भी शरीक नहीं हुए होंगे?
जवाब: मैं कहीं भी जाता था या नहीं, आपको इससे क्या गरज?
आखिर आप चाहते क्या हैं? बातचीत का क्या मकसद है? मेरे पास इतना फालतू वक्त नहीं है, जो आपके हर सवाल का जवाब देता रहूं। (अटकने के बाद मौलाना ने अपना पल्ला झाड़ना ही मुनासिब समझा)
© अरशद रसूल