मौन
‘मौन’ बहुत कुछ कहता है,
तुमसे मेरे प्रतिवादों पर,
जब शब्द जुबां पर रूक जाऐं,
एक दूजे के प्रतिघातों पर….
फिर शब्दों का शोर नहीं
आरोप नहीं..अफसोस नहीं,
निशब्द गवाही ‘मौन’ बने,
उतरें मन के प्रतिमानो पर….
‘मौन’ वेग है परम प्रबल,
विस्मयकारी ये ‘मौन’ सदा,
यह कुंञी लाखों गांठों की,
सब कह दे जिसका ‘मौन’ सधा….
ध्वनि की परिणिति ‘मौन’ बनी,
ब्रह्मांड ‘मौन’ पर बसता है,
कितनी आवाजें हैं जब्त यहां,
कितना सन्नाटा पसरा है….
अब मैं भी जानूं ‘मौन’ है क्या,
जो बिना कहे, सब कहता है..!!!
©विवेक’वारिद’ *