मौन
कब तक यूं ही मौन रहोगी
मेरी जां कुछ बोलो
अपने इस पगले के खातिर
अपने मुंह को खोलो
यू तो सब कुछ लुट जाएगा
गम जो न बाहर आएगा
अपनी बात बताने को
अब तो चुप्पी खोलो
कब तक यूं ही मौन रहोगी
मेरी जां कुछ बोलो
अपने सपने को लेके
वादे किए थे जो हमने
पूरा करेंगे साथ में मिलके
टॉप करेंगे तुम संग रहके
बात कोई जो बुरी लगी हो
तो मुझको कुछ कह लो
कब तक यूं ही मौन रहोगी
मेरी जां कुछ बोलो
डांट तुम्हारी मैं सह लूंगा
मौन बहुत खलता है
बात बात में रो देता हूं
धैर्य वहीं मैं खो देता हूं
मुझे संभालने आ जाओ
अपनी चुप्पी खोलो
कौन तक यूं ही मौन रहोगी
मेरी जां कुछ बोलो
© अमरेश मिश्र ’सरल’