मौन बाण चलायेगा
मौन बाण चलायेगा
मौन रहकर पर्यावरण
अपना बान चलायेगा
क्या सोचे रे मन मुरख
हा हा कार मचायेगा।।
उबल पडे़गा धरा ह्दय
भानू अग्नइ बरसायेगा
जल विहीन होगी धरती
सृष्टि उलट हो जायेगा।
दुषित होगे जब वायु मंडल
परान वायु निकल जायेगा
पायेगा फल मानव कर्म का
विश्व जग विनष्ट हो जायेगा ।।
क्या सोचे रे मानव मुरख
हा हा कार मच जायेगा
मौन रहकर पर्यावरण
अपना बाण चलायेगा ।
फुट पड़ेगा आकाश मंडल
तारे टुटकर आयेंगे
क्या सोचे रे मानव मुरख
हा हा कार मचायेंगे।
बिफड़ पड़ेगी पर्यावरण
अपना रूप दिखायैंगै
मृत्यु लोक की पावन धरा
श्मशान बन जायेगे।
इहां नहीं बचेगा पशु पक्षी,
न ही इंसान ही रह पायेगा
विकराल होगी,महादशा
महापरलय बन जायेगा।
विजय रखत है दुर दृष्टी
बिन पर्यावरण के मर जायेगे
क्या सोचे मानव मुरख
हा,हा कार मच जायेगे।।
डां विजय कुमार कन्नौजे अमओदई आतधलथ