मौन को भी तोड़कर फिर एक स्वर फिर से उठेगा
२१२२ २१२२ २१२२ २१२२
विधा -गीतिका
मत कभी खोना भरोसा वक्त यह भी सब कटेगा।
हो अंधेरा चाहे’ जितना एक दिन हरगिज छॅटेगा।।(१)
चांद भी डरता नहीं है देखकर काली अमावस,
तोड़कर के नित गहनतम प्रात: ही सूरज उगेगा।(२)
हो भले छोटा मगर जज्बात से कुछ सीखिए जी,
आंधियों, तूफान में भी दीप आखिर तक लड़ेगा।(३)
हो भले मझधार कश्ती हारता नाविक नहीं है,
दूर हो साहिल मगर वह राह पर आगे बढ़ेगा।(४)
शून्य कब ठहरा अकेला शून्य में एकत्व होकर
मौन को भी तोड़कर फिर एक स्वर फिर से उठेगा।(५)