मौन के प्रतिमान
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मौन के प्रतिमान …
मौन की एक परिभाषा है,
इसकी एक अलग ही सार्थक भाषा है।
शब्दों का दायरा सीमित होता है,
अव्यक्त मौन सदा ही व्यापक होता है।
मौन एक सर्वोत्तम संस्कार है,
शब्दों के बोझ से जो मुक्त होता है।
पलता है शिशु जैसे कोख में,
कभी शांत,कभी किलोल करता है।
मौन ढलता जब शब्दों में,
कभी-कभी बहुत अनर्थ करता है।
जो ना समझे मौन को हमारे,
शब्दों के अर्थ कहाँ ढूंढ पाता है।
सत्य कह दूँ या मौन रहूँ ,
पर सत्य यहाँ सुनना कौन चाहता है।
बाह्य संवेदनाओं के परिणाम स्वरूप ही,
अंतर मन में मौन पनपता और पलता रहता है।
आक्षेप और नज़र अंदाज़ नज़रिए का शिकार होता ,
मौन फिर सीमित नहीं रहता विस्तृत होता जाता है।
राख के नीचे दबी चिंगारी बन,
मौन भी कभी कभी ज्वाला बन जाता है।
मन करता है मौन को व्यक्त कर दूँ, पर फिर ,
मानस पटल पर ही एहसास के प्रतिमान गढ़ लेती हूँ।
डॉ दवीना अमर ठकराल’देविका’