मौन की भाषा
मौन की भाषा
क्या तुमने कभी मौन को सुना है ,
उसकी गहराई को कभी गुना है.
क्या मौन की मिठास को चखा है ,
उसकी व्यापकता पर कभी हाथ रखा है.
मौन की भी भाषा होती है
थोड़ी कठिन होती है
लेकिन ,
जो समझ ले
उसके लिए
मौन,एक सम्पूर्ण साहित्य है.
एक ऐसा संसार
जहां अनगिनत विचार है,भाव है
और ,संवाद भी है.
ऐसा संवाद जो
अनंत सीमा लिए हुए है .
तुम समझो तो सही ,
मौन कितना कुछ कहता है .
मौन की विशालता को जानो
ये कितने अवसर देता है
आपको अपने पक्ष में उत्तर पाने का.
ये मौन ही है ,
जिसके आगे सब निरुत्तर है .
मौन चाहे तो क्या नहीं कर सकता .
चलायमान संसार में वाद ,संवाद
विचार,विनिमय,तर्क,वितर्क
हास-परिहास,और न जाने कितने
अभिव्यक्ति के ढंग है ,
इन सबका विजेता ‘मौन’
इसका अपना ही रंग है.
नम्रता सरन “सोना”