मौन की पीड़ा
अभिव्यक्तियों में कितने
विराम सब लगे हैं ।
मन में बचा न संयम
अब शील सब दहे हैं ।
नवोढा सी मूक भाषा
कुछ बोलती नहीं है ।
पर मन में कितने प्रश्न
अनसुलझे से गहे हैं ।
वंचित सभी विकल्प
बस अनिवार्यता गहे है ।
बस एक स्वजन ये मन हैं
सब आवरण नये है ।
हर आवरण में इतने
प्रतिबिम्ब मिल रहे है ।
मस्तिष्क जड़ हुआ है
विस्मित सा हम खड़े हैं ।