मौन अभिव्यंजना
क्षुब्ध दृग पलकों के जज़्बात।
झरते झर झर अश्रु जलप्रपात।।
तुमुल ध्वनि से तम एकाकार।
शून्य शैया सुप्त निद्रा तार।।
खार हो गई सुरभित पौन।
कंपित संवेदना उर पीर है मौन।।
पीड़ित कलिका तरसे मन त्राण।
बिन जल मछली तड़पें घट प्राण।।
नीलम शर्मा ✍️