मौन अधर
ये मौन अधर की बातें
केवल नैना कह पाते हैं
नैना सब कुछ सुन लेते हैं
मुख पर चैना रह जाते हैं
ख्वाब सुहावन पावन होकर
अरज के साथ प्रवास करे ज़ब
शुद्ध अन्तःकरण को वरण किए
मुख व्रत रहकर उपवास करे ज़ब
मन के अंदर के कलुष किले
कुछ पल में ही ढह जाते हैं
ये मौन अधर की बातें
केवल नैना कह पाते हैं
मूक अधर अचूक शब्द ज़ब
हिय से नैना तक आने लगे
हिय के अपरिमेय अखंड प्रमेय को
यूँ…. चुटकी में सुलझाने लगे
मन -भाव नीर में समाहित होकर
इन नैनों से आखिर बह जाते हैं
ये मौन अधर की बातें
केवल नैना कह पाते हैं
प्रेम के हर एक मूक शब्द को
निज भाषा में भाषित करते हैं
शब्दों को हिय तक ले जाकर
प्रेम को परिभाषित करते हैं
शब्द- प्रेम से प्रेम पृथक कर
दधि के सदृश मह जाते हैं
ये मौन अधर की बातें
केवल नैना कह पाते हैं
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
गोरखपुर, उ. प्र.