मौत
मौत ,तू कविता नहीं
पूरा काव्य संसार है।
जिस दिन मिलेगी मुझे ,
रोक लूँगी धड़कनों का
गतिशील स्पंदन ,
आती जाती साँसों का
हवाओं से रिश्ता
तोड़ ही लूँगी।
लिखूँगी गीत फिर
तेरी शैया पर
ए मौत ,तू आ तो जरा
छोड़ शर्मो हया
तुझसे गले मिल लूँगी।
नींद को भी दर्द हो
मिट जाये भेद सब
दिन रात का ।
हमसफ़र बन के
तेरे साथ रहूँ
पुनर्जन्म की
व्यथा ,
वियोग
कर्म
बदल देगी न तू।
ऐ मेरी जिंदगी
मौत !,तू जब आयेगी
पी मिलन के
गीत गायेगी
देह …छोड़ के ,
सब बंधन ..
तुझसे मिल जाएगी।
पाखी