मौत हर पल दर पर खड़ी
मौत हर पल दर पर खड़ी
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मौत हर पल दर पर खड़ी,
मुस्करा लो घड़ी दो घड़ी।
क्या भरोसा है जीवन का,
जी लो जिंदगी न कर तड़ी।
खामोश हो जाओगे तुम,
जगाते रहो प्रेम की लड़ी।
पुरवाई है सुहानी चली,
जल्दी कहाँ जाने की पड़ी।
ख्वाइशों का है अन्त नहीं,
रह जाएंगी यहीं पर पड़ी।
गाते रहो प्यार के तराने,
चल पड़ेगी रुकी हुई घड़ी।
जलिये मत जलाते रहिए,
बहारें जाएंगी नग में जड़ी।
स्नेह रंग में भीग जाओ,
सावन की लग गई झड़ी।
मनसीरत गीत है गाते रहे,
सुन लो,मत लगाओ अड़ी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)