मौत से किसकी यारी
मौत से किसकी यारी
सच्ची दिखती,अच्छी लगती,
यहाँ की चीजें सारी ।
कुल कुटुम्ब,धन हाट हवेली,
यार दोस्त व्यवहारी।
लेन देन व स्वार्थ जगत के
झूठी रिश्तेदारी।
अपना लगता, पर सपना है,
चितवत जब संसारी।
तय है गमन आज,कल,परसों,
मौत से किसकी यारी।
देखो खेल तमाशा रब का,
बरतो दुनियादारी ।
लेकिन सब आंखों धोखा,
सच बस एक मुरारी ।
संगत करो गुरु पूरे की,
कटे क्लेश करारी ।
मानुष देह भजन की बेला,
चढ़ पहुँचो हरिद्वारी ।
सतीश सृजन, लखनऊ.