मौत मौत मौत
मौत
मौत, मौत, मौत,
आखिर क्या है यह मौत
हर तरफ यही सुन रहा हुँ मै
आज वो मरा कल वो मरा
यही सुन रहा हुँ मै
हर एक पल ,हर एक क्षण
ईसी के डर मै जी रहा हुँ मै
ना जाने कब आ जाये मौत
टुट जाये मेरे रगींन सपने
बिखरे जाये मेरे मोतीयन का हार
मालुम नही रोज भागता हुँ इस से दुर
या कदम दर कदम नजदीक जाता हुँ
मौत मौत मौत
आखिर क्या है मौत
जिस रोज मै पावुगाँ अपनी मौत
कुछ अपने मेरे रोयेगे,
व्याकुल होगें
कुछ मित्र बोलेगे
था कोई अच्छा बन्दा
आज दुनिया छोड़ चला
सो गया है आज मौत की गोद मे
बस थोड़ी मजबुरी थी
तो आ गये है हम भी सामिल होने
ईस आखिर यात्रा मे मित्र को कन्धा देने
वरना काम तो मेरे भी घर पर बहुत है बाकी करने
पर मै सोया हुवा चिर निन्द्रा मै
टस से मस नि होवुगां
मौत मौत मौत
आखिर क्या है यह मौत
मौत असली खेल तो अब शुरु होगा
जब मेरे अपने ही मुझे नहलायेगे
मेरे तन से मेरा सब कुछ ले लेगे
मेरा स्वर्ण हार ,मेरे कान के मोती
हाथ की अँगुठी, सब कुछ तो छीन लेगे
मुझे बस एक श्वेत वस्त्र ओढा कर
मुर्द का नाम दे देगे
और फिर छिन कर मुझे प्रिये तुझ से
मुझे अपने ही घर से
अपने कन्धो पर ऊठा कर
शमसान घाट ले जायेगं
मै फिर भी सोया चिर निन्द्रा मै
टस से मस नही होवुगां
मौत मौत मौत
आखिर क्या है यह मौत
और फिर करगे ऐसा करेगे क
मेरी रुह भी काँप जायेगी
मुझे लेटा कर चिता पे
घी से नहला देगे
और फिर मेरा खुन ही मुझे
अग्नि के हवाला कर देगा
मै फिर भी चिर निन्द्रा मे सोया
टस से मस नही होवुगां
और मै एक तन क्षण भर मे ही राख बन जावुगां
और सब पुनः घर लौट जायेगे
और मै राख बना हुवा ईंतजार करुगा कल का
कोई मुझे ले जाये और बहा दे पवित्र नदियो मे
हो जाये मेरी मुक्ती इस संसार से
मौत मौत मौत
आखिर क्या है मौत
‘प्रिय’तुम सोच रही होगी
मैने तो तुम्हारा ख्याल ही नही किया
मौत के ईस खेल मे अकेला ही चला गया
पर
प्रिये कैसे लिखु तुम्हारे दुख को
शायद वो मौत तो मेरी होगी पर
वो दर्द जो तुम को होगा
वो मै बयां कैसे करुं
ना मेरे पास कोई शब्द है उन के लिये
ना कौई लफ्ज
शायद वो मौत मेरी नही
तुम्हारे सपनो की होगी
तुम्हारे अरमानो कि होगी
तुम्हारे सुख की होगी
तुम्हारे ह्द्रय की होगी
तुम मर कर भी जिन्दा होगी
मरुगाँ तो मै पर शायद मौत तुम्हारी होगी
शायद यही है मौत
शायद यही है मौत
शायद यही है मौत
(कविराज वीरेन् कविया’शेखु खैण नागौर)