मौत – बैचैन नहीं हम
हम हँसते रहे
मौत को चिढ़ाते रहे
वो डराती रही
हम खिलखिलाते रहे
डरते हैं जो तुझसे
वही तो डरेंगे
हमें क्या
हम हैं मस्तमौला
जब कहो कांधे चढेंगे
फ़ासला कितना है ?
जिन्दगी और मौत का
अभी बैठे हैं घर पर
फिर श्मशान जा बरसेंगे
जलाते है अभी
रोशन करने को दीये
फिर हम जल के ही
श्मशान रोशन करेंगे
अभी तो करते है
लोग बदनाम
नाम ले कर हमारा
फिर क्या ?
चिता को हमारी
बदनाम करेंगे
इठलाते थे बहुत
नादां थे हम
रखा जब ताबूत पर
समझ गये औकात हम
करोगे याद
पल दो पल
फिर तुम
अपनों में मस्त
धुंधले होते जाएंगे हम
स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल