मौत को जगाऊँ कैसे
गर तू होता नींद में,
तब तुझको जगा सकती।
खुली आँखों को कहता सोना,
इस पर तुझे आया ना रोना।
नींद आधी मौत है,
मौत मुकम्मल नींद।
ऐसे में तेरा ये सोना,
कैसा है,ज़रा बतला।
केवल तू उँगली थाम ले,
दौड़ तो तुझे लगानी है।
बैठकर थक जाएगा,
ज़रा भाग,कूद के देख।
खुली आँखों से देख सपने,
नींद में तू शेर है।
कर दिखा,चाहता है जो,
तेरी क्या तक़दीर है।
पल में सब हो जाएगा,
फिर कुछ न कर पाएगा।
जो करना है,
अभी कर ले,
सपनों की उड़ान भर ले।
जागरूक तुझे क्या लोग करेंगें,
तुझको ख़ुद ही होना है।
जब तक तू चाह न लेगा,
बस ना किसी का होना है।
सब चलेंगे साथ तेरे,
मत सोच अकेला है।
ज़िन्दगी की राह तो,
ग़म – ख़ुशियों का मेला है।
तू बता कैसे जागेगा,
ये दिन कैसे कटेगा।
कर ले थोड़ी मेहनत भी,
थोड़ी सी इबादत भी।
होगा जिम्मेदारियों का अहसास,
उठ चल पड़ जाएगा।
फिर कहेंगे लोग भी,
ये कल भी आएगा।
सोच ज़रा क्यों मौन है,
रास्तें क्यों गौण हैं।
कर तालाश मंज़िल की अपनी,
राह भी बन जाएगा।
सोनी सिंह
बोकारो(झारखंड)