मौत के मुँह में जाते बच गए
मौत के मुँह में जाते बच गए
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मौत के मुँह में जाते बच गए,
ख्वाब जो जीने के थे मच गए।
खूब अपनों ने की मन की सदा,
जो मिले दोस्त मन में रच गए।
जिंदगी मे हम अच्छा करते रहे,
कर्म अच्छे सारे दुख गच गए।
जो मिली करुणा जीवन में यहाँ,
भाव वैरी थे मेरे पच गए।
आज देखा मनसीरत मृत्यु को,
है लगा जैसे भगवन टच गए।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली(कैथल)